मेरे बारे में

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दिल्ली, India
मेरे बारे में: अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं , रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया, वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं..... सबको प्यार देने की आदत है हमें, अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे, कितना भी गहरा जख्म दे कोई, उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें... इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं, सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं, जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन" जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं, आँख से देखोगे तो खुश पाओगे, दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,, "अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी

ईमानदार हैं तो बेइमानी को क्यों नहीं देख रहे पीएम?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर डंका पीटा जाता रहा है कि वे निहायत ईमानदार हैं। काफी हद तक यह बात सही भी है, क्योंकि किसी मामले में अब तक प्रत्यक्ष रूप से पीएम पर कोई तोहमत नहीं सिद्ध हो पाया है। लेकिन सरकार की नाकामियों और इसमें शामिल मंत्रियों पर उठ रहे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पीएम की जवाबदेही सुनिश्चित है। यदि प्रधानमंत्री ऐसा मानते हैं तो उन्हें हर पहलुओं पर एक निर्णायक और सही उत्तर देना चाहिए, लेकिन पीएम द्वारा किसी मुद्दे पर बार बार चुप्पी साध लेना अथवा उससे हाथ खींच लेना यह इंगित कर रहा है कि पीएम हर मुद्दे पर सरकार की साख को बचाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं। यदि वाकई पीएम ऐसा कर रहे हैं तो ऐसा कहा जा सकता है कि वे अपने पद के दायित्व से विमुख हो रहे हैं।पीएम की चुप्पी पर गौर करें तो वर्तमान में टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सूचना अधिकार अधिनियम के तहत वित्त मंत्रालय से जो रहस्य हासिल किया गया है, उससे साबित हो रहा है कि तत्कालीन वित्त मंत्री चिदम्बरम को इस बात की जानकारी होगी। हो सकता वित्त मंत्री इस मामले में निर्दोष हों और उन्होंने इस पत्र को बहुत गंभीरता से नहीं लिया हो, लेकिन यदि ऐसा उन्होंने किया तो इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार है। क्योंकि यह मामला देश की अर्थ व्यवस्था से जुड़ा है और चिदम्बरम को इस पर धयान देना चाहिए था। और अब प्रधानमंत्री इस लापरवाही को मानने पर तैयार नहीं है। उधर हाल ही में अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोकपाल बिल लागू करने के लिए जो लंबा आंदोलन चलाया गया, उसमें पीएम सवालों के घेरे से अपने को निकालते दिखाई दिए। इस मामले में हजारे टीम को एक मजबूत आश्वासन न मिलने के कारण इतना लंबा इंतजार करना पड़ा। यहां यह उल्लेख कर देना जरूरी है कि अगर देश का आम नागरिक अपने मौलिक अधिकारों को लेकर कोई धरना-प्रदर्शन, आमरण-अनशन करता है तो उसकी जवाबदेही प्रथम दृष्टया पीएम की है, क्योंकि पीएम पूरे देश का सिस्टम चला रहे हैं, फिर अन्ना का आंदोलन तो वक्त का तकाजा है और देश की जनता से जुड़ा है। लेकिन इस मामले में पीएम की भूमिका असरहीन साबित हुई। अन्ना पक्ष के हर सवाल के जवाब में पीएम स्वयं को बचाते दिखे। इसके पूर्व दूरसंचार घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला आदि मामलों में पीएम बचते रहे हैं। इन स्थितियों पर चिंतन करें तो स्पष्ट हो रहा है कि पीएम ने अपने बचाव के लिए जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने का कवच पहन रखा है, लेकिन पुलिंदों पर आधारित यह कवच कब तक पीएम को बचा सकेगा, खासकर इन स्थितियों में जब जनता अपने अधिकार समझने के साथ उन्हें छीनने के लिए तैयार है। अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान देखने को मिला कि जनता पूरी तरह से जागरूक हो चुकी है और भ्रष्टाचार व घोटाले आदि बड़ी धांधली को लेकर जनता पीएम को बख्स नहीं सकती। यदि पीएम अपने दायित्व के प्रति सक्रिय नहीं हुए और इस तरह के मामलों में अपनी चुप्पी नहीं तोड़े तो उन्हें ऐसा दिन देखना पड़ सकता, जब जनता उनकी ईमानदारी और सादगी को दरकिनार करते हुए एक अक्षम प्रधानमंत्री होने की पेसगी कर दे। बहरहाल पीएम के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। और इसके लिए स्वयं पीएम ही जिम्मेदार